“मुनिश्री दीपरत्नसागरजी की साहित्य-यात्रा” का आरम्भ सन 1984 के अंत में हुआ, एक एक मुकाम आगे बढते हुए आज जून 2017 तक 585 प्रकाशनो की मंज़िल को ये यात्रा पार कर चुकी है
जब तक “प्रिन्टेड-पब्लिकेशन” युग था, तब तक 301 किताबें मुद्रित करवाई; फिर आरम्भ हुआ “नेट-पब्लिकेशन” युग, तब इस नए युग के साथ चलते-चलते फिर हमने भी ईसी राह् पे कदम रखते हुए On-Line एडीटिंग हो सके ऐसे माइक्रोवर्ल्डप्रोग्राम के झरीए ४५ आगम मूल को कम्पोझ कर के Online [free to air] कर दिया, उसके साथ ७०वर्ष पहले पूज्यपाद् आचार्यश्री आनन्दसागरसूरीश्वरजी संपादित “आगममंजूषा” को भी हमने किंचित् परिमार्जित करके यहाँ अलग-अलग किताबो के रूपमें स्थान दे दिया |
‘आगम विषय-अनुक्रम’ और ग्यारह आगमो का अंग्रेजी अनुवाद भी मैंने किया और उसे नेट पर शामिल किया, पूज्य आगमोद्धारकश्री संपादित आगमो की निर्युक्ति, वृत्ति, चूर्णि, सूत्र-गाथादि अनुक्रम,बृहत् विषयानुक्रम आदि को मैने अतिविशिष्ठ रूप से संकलित किया, जिसमे मूलप्रत के साथ छेड़छाड़ किए बिना ही बहोत उपयोगी हो शके इस तरह परिवर्तित कर के एवं A-4 साईझमें इंटरनेट पर रख दिया | प्रत्येक तिर्थंकरो की १८५ विगतो के साथ तीर्थंकर परिचय कराते हुए 24 किताबे नेट पर रख दी है, ईसके अलावा 2017 मे 25000 से ज्यादा पृष्ठोमे हमारी 61 किताबे भी प्रिन्ट हुइ है | आखिरमे ‘आगम-सागर-कोष: के पांच भाग भी तैयार हो गये
परिणाम स्वरुप आज मै मेरे 590 प्रकाशनके 1,04,000 पृष्ठोको आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हु | साथमे तत्त्वार्थसूत्र की 27,930 पृष्ठोमे संकलित DVD भी है | ईस तरह अंदाजित 1,32,000 पृष्ठ ईस DEEPRATNASAGAR.IN वेबसाइट पर मिलेंगे |
संपर्क: मुनि दीपरत्नसागरजी [M.Com. M.Ed. Ph.D. श्रुतमहर्षि]
‘जैन देरासर, “पार्श्वविहार” फ़ोरेस्ट रेस्ट हाउस के सामने,
Post: ठेबा [361120], Dis. जामनगर [गुजरात]
Mobile:+91-982596739 Email: Jainmunideepratnasagar@gmail.com
ये सभी प्रकाशन इंटरनेट पर भी उपलब्ध है www.jainelibrary.org